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(१०) नाति है इसका मी दश उदेशा आलुर्ग सादृश है परन्तु अगाहाना वेलिवर्ग माफीक समझना इति ॥ ॥
(५) मासपन्नी मुग्गपन्नो जीव सरिसव मादि यह मी एक जमीकन्दकी जाति है इसके मी मूलादि दश उद्देशा निर्विशेष आलुवर्ग सादृश समझना इति पांचम वर्ग समाप्तम् ।
इस तेवीसवा शतकके पांच वर्ग पचास उद्देशा है प्रत्येक उदेशापर पूर्वोक्त बत्तीस क्तीपद्वार स्वउपयोगसे लगालेना ।
सुचीना २१.२२-२३ शतक पढ़ने के लिये पेस्तर उत्पलकमला धिकार कण्ठस्थ करलेना चाहिये कि यह तीनों शतक सुगमता पूर्वक समझमें आसके इति ।
... सेवं भंते सेवं भंते तमेवसच्चम् ।
थोकडा नंबर ४ सूत्र श्री भगवतीजी शतक २९ उद्देशो ४
(अल्पा बहुत्व) (१) इस आरापार संपारके अन्दर अनन्ते परमाणु पुनल अनन्ते द्विरदेशी स्कन्ध एवं तीन प्रदेशी, च्यार प्रदेशी, पांच प्रदेशी, छे प्रदेशी, सात प्रदेशी आठ प्रदेशी, नो प्रदेशी, दश प्रदेशी यात् संख्याते प्रदेशी, असंख्याते प्रदेशी, अनन्त प्रदेशो स्कंध अनन्ते हैं।
- (२) इस चौदा रान परिमाणवाले लो कमें, एक बाकाश प्रदेशी अवगाहन किये हुवे पुद्गल अनन्ते है एवं २-३-४-५-६ ७-८-९-१० बाकाश देश बगाहन किये हुवे पुनः अनन्त