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. (१) कलातित-आगम विहारी अतिश्य ज्ञानवाले महात्मा मो कल्पसं वितिरक्त अर्थात् मत पविष्यके कामालाम देख कार्य करे इति । सामा• सं० में पूर्वोक्त पांचों कल्पपावे दो. परि. हार में कल्प तीन पावे, स्थित कल्प, स्थिवर कल्प, जिन कल्म । सूक्ष्म यथाख्य० में कल्पदोष पावे अस्थित कल्प और कल्पातित इतिद्वारम् ।
(५) चारित्र-सापा० दो० में निर्गय च्यार होते है पुलाक बुकश प्रतिसेवन, कषायकुशील । परिहार० सुक्ष्म० में एक कषाय कुशील निर्णय होते है ययाख्यात संयममें निर्गय और सनातक यह दोय निग्रन्थ होते है द्वारम् ।। ___(१) प्रति सेवना-सामा० छदो० मूरगुण ( पांच महावत) प्रति सेवी (दोष लगावे) उत्तर गुण (पंड विशद्धादि) प्रतिसेवीदया अप्रति सेवी होते है द्वारम् ।
(७) ज्ञान-प्रपमके च्यार संघममें क्रमासर च्यार ज्ञानकि माना २-३-३- ययाख्यातमें पांच ज्ञानकि भजना ज्ञान
ने अपेक्षा सामा० छदो० प्रबन्य बष्ट प्रवचन उ० ११ पूर्व डे । परिहार० स० नोवां पूर्वकि तीसरी आचार वस्तु उ० नौ पूर्व सम्पूर्ण, सुक्ष्म० यथास्यात न० अष्ट प्रक्चन उ० १४ पूर्व का सूत्र वितिरक्त हो इतिद्वारम् । . (८) तीर्थ-सामा• तीर्यमें हो, अतीथमें हो, तीर्थकरोंके हो पौर प्रत्येक बुद्धियों के होते है। दो० परि० सुक्ष्म तीर्थमें
होते है यथाख्यात सामायिक संयमवत् च्यारों में होते है विहारम् ।