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सौधर्म देवलोक, और शान देवलोक, एवं पचवीस देवताओं के पर्याप्ता चक्के शालीके पुष्पोंमें आते है वास्ते ७१ स्थानोंकि मागति है। श्या च्यार मांगा ८० है अवगाहाना उत्कृष्ट प्रत्यक अंगुकि है एवं नौवां, फलउदेशा तथा दशवां बीजउदेशा भी समझना । तात्पर्य यह है कि शाळी गहु जव ज्वारादिके सात उदेजोंमें देवता उत्पन्न नहीं होते है। शेष तीन उदेशामें देवता मरके उत्पन्न होते है। कारण पुष्पादि अच्छे पुगन्धवाले होते है। . इति प्रथम वर्गके दश उदेशा प्रथम वर्ग समाप्तम् ॥
(२) दुसरा कल मुगादिका वर्ग, शाली माफीक दशों उदेशा समझना तीन उदेशोंमें देव अवतरे।
(३) तीसरा-अलसी कसुंगादिका वर्गशाली माफोक दशो उदेशा समझना।
(४) बांस वेतका चोथा वर्म, शाली माफीक है परन्तु दर्शो उदेशामें देवता उत्पन्न नहीं होते है।
(१) इशु वर्गके तीसरा स्कन्धउदेशामें देवता उत्पन्न होते है शेषमें नहीं, स्कन्धमें मधुरता रहेती है।
(६) डाम तृणादि वर्गके दशोउपदेशोंमें देवता नहीं मावे सर्व वांस वर्गकि माफीक समझना ।
(७) अझोहरा वर्ग, वाससर्गके माफोक समझना। .
(८) तुलसीवर्ग, वासवर्गके माफीक सम्झना । __नोट-जीस उदेशामें देवता उत्पन्न होते हो वहां लेश्या वार पावे और मागा ८० होते है शेषमें लेश्या तीन भागा २६ होई है। इति मगवती सुत्र शतक २१॥ वर्ग आठ उदेशा ८० समाप्त।
ने में भंने नमेव मन्चम ।