________________
(१७) व्रतीद्वार-अवती एक अवती बहुत । (१८) क्रियाद्वार-सक्रिय एक सक्रिया बहुत ।
(१९) बंधद्वार-सात कर्मो के बन्ध और आठ कर्मों के बन्धले आठ मांगा पूर्ववत् । : (२०) संज्ञाद्वार-आहारसंज्ञा मय० मैथुन० परिग्रह च्यार पदके ८० मांग देखो उत्पलाधिकार ।
(११) कषायद्वार-क्रोध, मान, माया, लोप च्यार पदके मांग ८० देखो उत्पलाधिकार ।
(२१) वेदद्वार-नपुंसकवेद एक नपुं० बहुत
(२३) बन्धद्वार-त्रिवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद हम तीनों वेदके २६ मांगोंसे बन्द करता है।
(२४) संज्ञोद्वार-असंज्ञो एक-बहुत । (२५) इन्द्रियद्वार-सइन्द्रियएक-बहुत ।
(२६) अनुगन्धद्वार कायस्थिति-जघन्य अन्तर महुर्त. उत्कृष्ट ख्याते काल अर्थात् शालादिके मूलका मूलपणे रहे तो असंख्यात काल रह शाते है।
(१७) संमहो-अन्य गति तया जातिके अन्दर कितने मा करे कीतने काउतक गमनागमन करे।