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मसंज्ञी मनुष्य मरके पृथ्वीकायमें ज० भन्तर महुर्त उ. २२००० वर्षकि स्थितिमें उत्पन्न होता है. ऋदि स्वयं उपयोगसे देहना सुगम है । नौ गोंके बदले यहांपर ४-५-६ तीन गमा बेहना कारण असंज्ञी मनुष्य अपर्याप्ती अवस्थामें ही मृत्यु प्राप्त हो जाते है वास्ते अपना जघन्य कालसे तीन गमा होता है शेष छे गमा सून्य है।
संज्ञी मनुष्य संख्यात वर्षवाला पृथ्वीकायमें ज० अन्तरमहुत . उत्कृष्ट २२.०० वर्षोंकि स्थितिमें उत्पन्न होता है. ऋद्धिके २. द्वार जेसे रत्नप्रभा नरकमे मनुष्य उत्पन्न समय कही थी इसी माफीक केहना तफावत गमामें है सो कहते है। (३) प्रथम दुसरा तीसरा गमाके नाणन्ता । .
(१) भवगाहना ज० अंगुलके असं० भाग उ. ६.. धनुष्य।
(२) मायुष्य न० अन्तर० उ० पूर्वकोडका ।
(३) अनुबन्ध आयुष्यकिमा फीक । (१) मध्यम गमा तीन ४-६-६ तीयंच पांचेन्द्रिय माफीक । (३) उत्कृष्ट गमा तीन ७-८-९ नाणन्ता तीन तीन ।
(१) अवमाहाना ज० उ० ५०० धनुष्यकि। (२) मायुष्य ज. उ. कोड पूर्वका । (१) मनुबंध भायुप्यकि माफीक ।
नौ गमाका काल मनुष्यकि न. उ० स्थिति तया एथ्वी कायकि १०० स्थितिसे लगालेना। रीति सब पूर्व लिखी