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में पांच है परन्तु वैक्रय और तेनस करते नहीं है। पाठक देवलोक तक न. दोय भव उ० आठ भव करते है। मणत नौवा देवलोकके देव चक्के मनुष्य में ज० प्रत्यक वर्ष उस कोडपूर्वकि स्थिति उत्पन्न होते है। मव ज० दोय उ० छ । कार न. अठारा सागरोपम प्रत्यक वर्ष उ• सतावन सागरोपम तीन कोडपूर्व इसी माफोक नौ गमा परन्तु ऋद्धि सब देवलोकके स्थानसे कहना इसी माफोक दशवा, इग्यारवा, बारहवा देवलोक और न
आवेगम मी कहना स्थिति गमा स्वपयोगसे लगा लेना । ऋद्धि के २० द्वार प्रत्यक स्थानपर कहना चाहिये ।
विजय वैमानके देव मनुष्यमें न. प्रत्यक वर्ष उ० पूर्वकोड स्थितिमें उत्पन्न होते है। परन्तु अवगाहाना एक हाथ दृष्टीएक सम्यग्दष्टी, ज्ञानतीन, स्थिति ज० ३१ सागरोंफ्म, २०३३ सागरोपम शेष ऋद्धि पूर्ववत् भव ज० दोय उ० च्यार मव, काल ज० ३१ सागरोंपम प्रत्यक वर्ष २०६६ सागरोपम, दोय कोडपूर्व मधिक इसी माफीक शेष आठ गमा मी समझना । एवं विनयंत, जयन्त, अपराजित वैमान मी समझना । तथा सर्वार्थसिद्धि वैमानवाले देव न० दोयभव, उ० मि दोयमव करते है यह गमा ७-(-९ तीन होगा काल . (७) गमें काल तेतीस सागरोपम प्रत्यक वर्ष
(८) गर्भ काल , " ". (९) गमें काल , , कोडपूर्व
शेष छे गमा तुट जाते है कारण सर्वार्थसिद्ध वैमानमे जर उ० तेतीस सागरोपम कि ही स्थिति है। इति १४-२१।।