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(२२) बाणमित्र (व्यन्तर ) देवतों का उद्देशा-संज्ञो तीर्थक असज्ञी तीर्यच संज्ञो मनुष्य तथा मनुष्य तीर्थच युगळीया मरके पर देवताओंमें म० दश हमार वर्ष उ० एक फरवोपमकि स्पितिमें उत्पन्न होता है इसकि २० द्वारकि ऋद्धि तथा नौ गमा नगकुमारकि माफीक समज्ञना तथा युगलीया उत्कृष्ट स्थितिवाला मी व्यन्तर देवोंमें नावेगा तो एक पत्योपमक स्थिति पावेगा अधिक स्थितिका अमाव है। इति २४-३२
(२३) ज्योतीषी देवोंका उद्देशा-संज्ञा तीर्थच संज्ञो मनुष्य और मनुष्व तीर्थच युगलीये मरके ज्योतीषी देवतोंमें ज० पल्यो. पमके आठ वे माग उ० एक पल्योपम एक लक्ष वर्षकि स्थितिमें उत्पन्न होते है। विवरण___ असंख्यात वर्षके संज्ञो तयच पांचेन्द्रिय, मरके ज्योतीषो देवतावोंमें उत्पन्न होते है परंतु अपनि स्थिति ज. पत्योपमके आठ के माग उत्कृष्ट तीन पल्योपमवाले वहां ज्योतीषीयोंमें ज० उ० एक पल्यां० लक्ष वर्ष अधिक। शेष ऋद्धि अनुरकुमारकि माफोकए भवन० उ० दोय मव करे जिसके नौ गमा।
(१) गमें पश्यो० उ० च्यार पल्यो० लक्ष वर्ष । (२) गमें ,, उ० तीनपल्यो । अधिक। (३) गमें दोष पल्यो दो लक्ष वर्ष उ० १ १० लस बर्ष ।
(४) गमें, ज० उ० पावपल्यों० परन्तु अवगाहाना ज. प्रत्येक धनुष्य उ० १८०० धनुष्य साधिक। . (५-६) यह दोय गमा तुट जाते हैं-शुन्य है। कारण