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(४८) पृथ्वीकायके अन्दर च्यारो निकायके देवता उत्पन्न होते है यथा भुवनपतिदेव, व्यन्तरदेव, ज्योतीषीदेव, वैमानिकदेव, जिससे भुवनपतिदेव दश प्रकारके है यथा असुरकुमार यावतस्तनत कुमार ।
असुर कुमारके देव पृथ्वी कायमें ज० अंतर महुत उ. २२००० वर्षोंकि स्थितिमें उत्पन्न होते है, जिसकी ऋद्धि । ।
(१) उत्पात-असुरकुमार देवंतावोंसे । (२) परिमाण-ज० १.२.३ उ० संख्याते असंख्याते। (३) संहनन-छे वों संहननसे असंहननी है ।
(४) अवगाहाना भव धारणी ज० अगुलके असंख्यातमें भाग उ० सात हाथ उत्तर वैक्रय करे तो ज० अंगुलके संख्यातमें भाग उ० सधिक लक्ष जोजनकि यह भव संबन्धी अपेक्षा है।
(१) संस्थान-भवधारणी समचतुस्र. उत० नानाप्रकारका । ... (६) लेश्या च्यार (७) दृष्टी तीन (८) ज्ञान तीन अज्ञान तीन कि भजना (९) योगतीन (१०) उपयोग दोय (११) संज्ञाच्यार (१२) कषाय च्यार (१३) इन्द्रिय पांचों (१४) समुदधात पांचक्रमःसर . ( १५ ) वेदना दोनों (१६) वेद दोय. त्रिवेद, पुरुषे वेद. (१७) स्थिति ज० १०००० वर्ष. उ० साधिक सागरोपम. (१८) अनुबन्ध स्थिति माफिक (१९) अध्यवसाय, असं० प्रसस्थ, अप्रसस्थ दोनों (२०) संभहो भवापेक्षा न दोय भव उ० दोय भव कारण देवता पृथ्वीकायमें उत्पन्न होते है परन्तु पृथ्वी कायसे पीछा देवता नहीं होते है वास्ते एक भव पृथ्वी कायका दुसरा देवतोंका कालापेक्षा ज० अन्तर महुर्त और दश हजार वर्ष उ० १२००० वर्ष और साधिक सागसेपम इतना काल तक गमनागमन करे. निस्के गमा नौ।