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उ० तीन परयोपमकि पाते है। नौगमा और ऋद्धिके २० द्वार असंख्यात वर्षावाला तीर्यचकी माफीक समझना इतना विशेष है। कि प्रथमके गमा तीन जिसमें पहेला दुसरा गमामें अवगाहाना जघन्य साधिक पांचसो धनुष्य उ० तीन गाउ कि तथा तीसरे गम में अवगाहाना जघन्य उत्कृष्ट तीन गाउकि है । अपने जघन्य कालके तीन गमा ४-५-६ में अवगाहाना ज० उ० साधिक पांचसो धनुष्य है । और अपने उत्कृष्ट ग़मा तीन ७-८ - ९ में 1 अवगाहना ज० उ० तीन गाउकि है शेष पूर्ववत् । संख्याते वर्षका संज्ञी मनुष्य असुर कुमार में उत्पन्न हुवे तों जैसे संज्ञी संख्याते वर्षका मनुष्य, रत्नप्रभा नरकमें उत्पन्न हुवा था इसी माफीक नौगमा तथा २० द्वार ऋद्धिका समझना परन्तु मामें उत्कृष्ट स्थिति असुरकुमार कि साधिक सागरोपमकी कहनी । शेषाधिकार रत्नप्रभावत् ।
इति चौवीसवा शतकका दुसरा उद्देशा ।
जेसे असुर कुमारका अधिकार कहा है इसी माफीक नागकुमार सुवर्ण कुमार, बिद्युतकुमार, अग्निकुमार, द्विपकुमार, दिशाकुमार, उद्घीकुमार, वायुकुमार, स्तनत्कुमार, इस नौ जातिके देवतोंकों नौ निकाय भि कहते है ।
विशेष इतना है कि इन्होंकि स्थिति ज० दश हजार वर्ष उत्कृष्टी देशोन दोय पल्योपमकि है वास्ते गमा कालमें इस स्थिति से बोलाना | नोट - युगलीया मनुष्य तथा तीर्थंच आपनि उत्कृष्टी स्थितिसे अधिक स्थिति देवतों में नहीं पाते है । वास्ते देवतावांके उत्कृष्ट