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(३) ' ओघसे उत्कृष्ट ' तीर्थचका ज० उ० काल और नारकी का उत्कृष्ट काल समझने ।
(8) 'जयसे ओघ' तीर्यचकाजघन्य और नरकीका ओघकाळ । (५) 'मघन्यसे जघन्य' तीर्थच और नारकी दोनोंका जघन्य काल । (६) 'जघन्यसे उत्कृष्ट' तीर्यं चका जघ • काल और नरकका उ० काल (७) 'उत्कृष्टसे ओघ' तीर्थचका उत्कृष्ट और नरकका ओधकाल । (८) 'उ० से जघन्य' तीर्यंचका उत्कृष्ट और नरकका जघ० काल } (९) ' उ० से उत्कृष्ट ' तीर्थंच और नरक दोनोंका उत्कृष्टकाल ।
(२) ऋद्धि - जिस्का २० द्वार है । जो जीव परभव गमन करता है वह इस भवसे कोनसी कोनसी ऋद्धि साथमें लेके जाता है, जेसे तीर्थच पांचेन्द्रिय रत्नप्रभा नरकमें जाता है तों कितनि ऋद्धि साथमें ले जाता है यथा
(१) उत्पाद - वीर्यच पांचेन्द्रियसे नरक में उत्पन्न होता है । (२) परिमाण = एक समयमें १-२-३ यावत् असंख्याते (३) संघयण-छे ओं संघयणवाळा तीयंच नारकीमें उत्पन्न हो। (४) अवगाहाना - जघन्य अंगुलके असं० भाग | उ० हजार मनवाला, वीर्यच नरक में उत्पन्न होता है ।
(१) संस्थान - छे व स्थानवाला ।
(६) लेश्या छेवों लेश्याबाला । ( भवापेक्षा ) (७) ज्ञानाज्ञान- तीनज्ञान तथा तीनज्ञानकि भजना |