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(१९) (८) उ०से जघन्य० कोडपूर्व तीन सागरो० च्यार अन्तर०
- च्यार सागरो (९) उसे उत्कृष्ट० कोडपूर्व एक सागरो० च्यार कोडपूर्व ११
सागरो०
इसी माफीक वालुकाप्रभा, पंकपमा, धूमप्रभा, तमप्रभा, भी समझना परंतु नौगमामें स्थिति जघ० उत्कृष्ट अपने अपने स्थानकी समझना तथा ऋद्धिमें संहनन द्वार पहली दुसरी नरकमें छेवों संहननवाला तीर्यच जावे तीनी नरकमें छेवटो संहनन वजेके पांच संहननवाला जावे एवं चोथी नरकमें किलका संहनन वर्जके च्यार संहननवाला जावे। पांचवी नरकमें अर्द्धनाराच वर्जके तीन संहननवाला जावे । छटोनरकमें नाराच वर्षके दोय संहननवाला जावे।
संज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रिय मरके सातवी नरकमें जावे वहापर स्थितिन० २२ सागरोपम उ० ३३ सागरोपमकि पावें, ऋद्धिके २० द्वार रल प्रभाकि माफीक परन्तु सहननद्वारमे एक बज्ररूपम नाराचवाला तथा वेदद्वारमें एक स्त्रि वेद नहीं जावे । संभहो भवापेक्षा ज० ३ भव उ० ७ भव कालपेक्षा ज० २२ सागरोपम दोय अन्तर मुहुर्त ० उ० ६६ सागरोस्म च्यारकोड पूर्वाधिक । परंतु तीजे छटें नवमें गमामें ज० ३ भव उ० पांच भव करते है कारणकि २१ सागरोपमके लगते तीन भव कर सकते है परंतु ३३ सागरोपमके तीन भव लगता नहीं करे किंतु दोय भव कर सके । वास्ते ३-१-९ गमे ३-५ भव करे।