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० कोडपूर्व और पल्यो० असं० भाग ।
पूर्व भो २० द्वार ऋद्धिके बतलाये गये है वह प्रत्यक मम पर लगा लेना इसके अन्दर जो तफावत है वह यहांपर बतला
(३) ओघ गमा तीन १-२-३ समुच्चयवत् । (३) जघन्य गमा तीन ४-५-६ जिसमें नांणन्ता तीन ।
(१) स्थिति अन्तर महुर्त वाला जावे । (२) अध्यवसाय असंख्याते सो अप्रसस्थ ।
(३) अनुबन्ध ज० उ० अन्तर महुर्तका । (३) उत्कृष्ट गमा तीन ७-८-९ जिसमें नाणन्ता दोय ।
(१) स्थिति कोड़पूर्व वाला जावे ।
(२) अनुबन्ध भी कोडपूर्वका । इति असंज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रिय मरके रत्नप्रभामें जाते है शेष ६ नरकमें असंज्ञी नहीं जाते है।
(१) संज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रिय संख्याते वर्षवाले मरके सातों नरकमें जाशक्ते है जिसमें रत्नप्रभामें उत्पन्न हुवे तो ज० दश हजार वर्ष उ० एक सागरोपम कि स्थिति पावे । जिस्की ऋद्धिका वीसद्वार।
(१) उत्पात-संज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रियसे। (२) परिमाण-एक समयमें १-२-३ यावत् असंख्याते । (३) संहनन-छे वो संहननवाला तीर्यच ।