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(२२) इस थोकडामें मौख्य दोय बातों प्रथम ठीक ठीक समझलेना चाहिये (१) गमा जीसका नौ भेद है (२) ऋद्धि जिस्का वीस द्वार है। . (१) गमा-गति, जाति, के अन्दर गमनागमन करना जिस्मे भव तथा कालकि मर्यादा बतानेवालेकों गमा कहते है। जेसे तीर्यच पांचेन्द्रि रत्नप्रभा नरकमें जावे तो जघन्य दोयभव एक तीर्यचकों, दुसरो नरककों यह दोय भवकर नरकसे निकलके मनुष्यमें जावे। उत्कृष्ट आठ भव-च्यार तीर्यचका, च्यारनरकका फीरतों अन्य स्थान (मनुष्यमें)में जाना हीपडे कारण तीर्यच और रत्नप्रभा नरकके आठ भवसे अधिक नहीं करे । कालकि अपेक्षा तीर्यच पांचेन्द्रियका न० अन्तर मुहुर्त । उ० पूर्वकोड तथा नरकका न० दशहजार वर्ष । उ० एक सागरोपमकि स्थिति है जिस्के नौगमा होता है यथा ।
(१) 'ओघसे ओघ' ओघ कहते है समुच्चयकों । जीस्मे जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकारका आयुष्य समावेस हो शक्ता है | जेसे ज० दोयभव अन्तर महूर्तसे कोड़ पूर्वका तीर्यच रत्नप्रभा नरकमें उत्पन्न होते हैं, वहांपर दशहजार वर्षसे एक सागरोपम कि स्थिति प्राप्त करता है तथा आठभव करे तो च्यार मन्तर महुतसे च्यार कोड़ पूर्व तीर्यचका काल और चालीसहजार वर्षसे च्यार सागरोपम नारंकीका काल यह प्रथम 'ओघसे ओघ' गमाहुवा ।
(२) 'ओघसे जघन्य ' तीर्यचका जघन्य उत्कृष्ट काल और नारकीका स्वस्थान पर जघन्यकाल ।