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२९४ यद्यपि स्थलमें साधु और स्थलमें दातार हाती कल्पै; परंतु नौकामें बैठते समय साधु स्थलमें आहार पाणी चुकाके वस्त्र, पात्रकी एकही पेट ( गांठ ) कर लेते है. वास्ते उस समय आहार पाणी लेना नहीं कल्पै. भावना पूर्ववत्. यहां पन्थीलोग कीतनीक कुयुक्तियों लगाते है वह सब मिथ्या है. साधु परम दयावन्त होते है. सब जीवोंपर अनुकंपा है.
(४६) ,, मूल्य लाया हुवा वस्त्र पहन करे, ३ (४७) एवं उधारा लाया हुवा वस्त्र. (४८) सलट पलट कीया हुवा वस्त्र.
(४९) निर्बलसे सबल जबरदस्तीसे दिलावे, दो विभाग) एकका दिल न होनेपर भी दुसरा देवे, और सामने लाके देवे ऐसा वस्त्र पहन करे. ३
भावार्थ-मूल्यादिका वस्त्र लेना मुनिको नहीं कल्पै.
(५०) ,, आचार्यादिके लीये अधिक वन ग्रहन कीया हो वह आचार्यको विगर आमंत्रण करके अपने मनमाने साधको देवे. ३
(५१), लघु साधु साध्वी, स्थविर (वृद्ध) साधु साध्वी जिसका हाथ, पग, कान, नाक आदि शरीरका अवयव छेदा हुवा नहीं, बेमार भी नहीं है, अर्थात् सामर्थ्य होनेपर भी उसको प्र. माणसे' अधिक वस्त्र देवे, दिलावे, देतेको अच्छा समझे.
(५२) एवं जिसके हाथ, पांव, नाक, कानादि छेदा हुवा हो, उसे अधिक वन न देवे, न दिलावे, न देतेको अच्छा समझे.
१ तीन वस्त्रका परिमाण है. एक बख २४ हाथका होता है. साध्वींक च्यार (४) वस्त्रका परिमाण है.