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साधुषोंको बैठनाही नहीं चाहिये. अगर बैठना हो तो जल्दीसे पार हो, ऐसी नौकामें बैठे, नदीका दुसरा तट दृष्टीगोचर होता हो, ऐसी नौकामें बैठे. बेठती बखत मुनि सागारी अनशन कर नौकामें बैठे. जैसे नौकामें बैठने के पहला भी गृहस्थोंकी दाक्षिण्यतासे गृहस्थोंका काम न करे, इसी माफिक ही नौकामें बैठनेके बाद भी गृहस्थका कार्य न करे. जैसी मुनिकी दृष्टि नौकावासी जीर्वोपर है, वैसीही पाणीके जीवोंपर है. मुनि सवजीवोंका हित चाहाते है. वहांपर गृहस्थका कार्य, साधु दाक्षिणतासे न करे यह अपेक्षा है. कारण मुनि उस समय अनशन किया हुवा अपना जीनाभी नही इच्छता है.
( १८ ) ,, साधु नौकामें, दातार नौकामे. । १९ साधु नौकामें दातार पाणीमें. ( २० ; साधु पाणीमें, दातार नौकामें. । २१) साधु पाणीमें, दातार पाणीमें. ( २२ ) साधु तथा दातार दोनों नौकामे. ( २३ ) साधु नौकामे दातार कर्दममें. (२४) साधु कर्दममें, दातार नौकामें.
(२५) साधु तथा दातार दोनों कर्दममें. नौका और जलके साथ चतुर्भगी-२६ २७-२८
(२९ । नौका और स्थलके साथ चतुर्भगी समझना.३० ३१ ३२ ३३ जल और कर्दमसे चतुर्भगी. ३४ ३५ ३६ ३७ जल और स्थलके साथ चतुर्भगी. ३८ ३९ ४० ४१ कर्दम और स्थलके साथ चतुर्भगी. ४२ ४३ ४४ ४५. उक्त १८ वा सूचसे ४५ वा सूत्र तक दातार आहार पाणी देवे तो साधुषोंको लेना नहीं कल्पै.