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(४) मनुष्य नरके शार्करमादि के नरक, तीसरासे बाहरवा देवलोकतक दश देवलोक, एक नौनींवेग, एक प्यारानुसर वैमान.' एक सर्वार्थसिद्ध वैमान एवं १९ स्थान में जावे महांसे स्थिति जघन्य अथक वर्ष कि उ० कोड पूर्व कि, वहां पर जघन्योत्कृष्ट अपने अपने स्थान माफीक समझना | भवापेक्षा पांच नरक ( २-१-४-५-६ ठी) और छे देवलोक ( ३-४-५ - ६ - ७ - ८ वां ) में ज० २ भव उ० आठ भव करे। सातवी नरकका जघन्योत्कृष्ट दोय भव कारण सातवी नरक से निकलके मनुष्य नही होवे । च्यार देवलोक (९-१०-११-१२ वां) और नौग्रीवैगमें ज० तीन भव उ० सातभव, च्यारानुत्तरवैमानमें ज० तीन भव उ० पांच भव सर्वार्थसिद्ध वैमानमें जाने अपेक्षा तीन भव आने अपेक्षा दो म करे |
(५) दश भुवनपति, व्यन्तर, ज्योतीपि, सौधर्म इशान देवलोकके देवता मरके, पृथ्वी पाणी वनस्पतिमें जावे, यहांसे स्थिति ज० उ० अपने २ स्थान से समझना । वहां पर भी अपने अपने स्थान माफीक भवापेक्षा ज० दोय भव उत्कृष्टेभि दोग भव करे । कारण पृथ्व्यादिसे निकलके देवता नही होते हैं ।
(१) मनुष्य युगल और तीर्यच युगल मरके, दशभुवनपति, स्वन्तर, ज्योतीषी, सौधर्म, इशान, एवं १४ स्थानमें उत्पन्न होते है, वहांसे स्थिति जघन्य साधिक कोड पूर्व उ० तीन पल्योपम,
पर ज० दशहजार वर्ष उ० असुर कुमार में तीन पल्योपक नावादि नव कुमारमें देशोनी दोयपलोपम, व्यन्तरमें एक पस्योपम मोतीषीमें जावे तो यहासे न० पल्योपमके आठमा भाग उ०
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