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नहीं आता है, वास्ते दोय ही भव करता है। शेष नौ गया और बीसद्वार ऋद्धिका पहला दुसरा द्वारसे स्वमति लगा लेना चाहियों
(२) संज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रिय मरके वैक्रय शरीर घारी २७ स्थानमें जावे-यथा सात नरक, दश भुवनपति, व्यंतर, ज्योतीषी पहलासे आठवा देवलोक तक, यहांसे जघन्य अंतर महुर्त उ० कोड पुर्व, वहांपर अपने अपने स्थानकि जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति पावे भवापेक्षा २१ स्थानमें जघन्य २ यव उ०८ भवसो. दोषभव, एक यहांका एक वहांका, उत्कृष्टआठ च्यार यहांका च्यार वहांका, सातबी नरकमें जानेकि अपेक्षा छे गमा ( तीनो छटो नौमो वर्जके ) ज० तीनमव उ० सात भव करे । अने कि अपेक्षा ज० दोय उ० छे भव करे और तीन गमा पेक्षा जानेमें ज० ३ भव उ० ५ भव, आनापेक्षा जघन्य दोय भव उ० च्यार भव करे। भावार्थ:... सतावी नरककि उत्कृष्ट स्थिति ३१ सागरोपमका भव करे तो दोय भवसे अधिक न करे । ओर जघन्य बावीस सागरोपमके भव करे तो तीन भवसे अधिक नही करे वास्ते ३-७+२-६+३ ५+२-१ भव कहा है।
४ (३) मनुष्य मरके, पहली नरक, दश भुवनपति व्यन्तर ज्योतीषी, सौधर्म, इशान देवलोक एवं १५ स्थानमें जावे, यहांसे जघन्य प्रत्यक मास और उत्कृष्ट कोड पूर्व कि स्थितिवाला जावे वहांपर अपने अपने स्थान कि जघन्योत्कृष्ट स्थिति पावे | भव जघन्य दोय उत्कृष्ट पाठ करे।