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(१९) देवलोक यह चौदा स्थानकेदेव मरके पृथ्वी पाणी वनास्पतिमें भावे. नाणन्ता च्यार च्यार । ज० गमातीन नाणन्ता दो दो (१) स्वस्थानका जयन्य आयुष्य (२) अनुबन्ध आयुष्य माफीक, उत्कृष्ट गमा तीन नाणन्ता दो दो (१) स्वस्थानका उ० आयुष्य (२) अनुबन्ध आयुष्य कि माफिक एवं चौदाकों च्यार गुने करनेसे ५६ पृथ्वी कायका ५६ अपकायका ५६ वनास्पति कायका सर्व १६८ नाणन्ता हुवा।
(८) पृथ्वीकाय मरके पृथ्वी कायमें उत्पन्न होते हैं नाणन्ता . छे छे ज० गमातीन नाणन्ता च्यार च्यार (१) लेश्या तीन (२) अन्तर महुर्तका आयुष्य (३) अनुबन्ध अन्तर महुर्तका (४) अध्यवसाय अप्रसस्थ, उ० ममातीन नाणन्ता दो दो (१) आयुप्य १२००० वर्ष (२) अनुबन्ध २२००० वर्ष, एवं अपकाय परन्तु आयुष्य उत्कृष्ट ७००० वर्ष एवं ते उकाय परन्तु लेश्याका नाणन्त वर्गके पांच नाणन्तां है उ० आयुष्यानुबन्ध तीनरात्रीका एवं वायुकाय परन्तु समुद्घातका नाणन्त अधिक होनेसे ६ नाण. न्ता है उ० मायुप्यानुबन्ध ३००० वर्ष एवं वनास्पतिकार परन्तु नाणन्ता सात है जिसमें है तो पृथ्वीवत् (७) अवगाहनः ३० प्रत्यक अंगुलकी है सर्व ३० नाणन्ता हुवा । तीनवैकलेन्द्रिय भौर असंज्ञो तीयच पांचेन्द्रिय मरके पृथ्वी कायमें जावे निसका नाणन्ता नौ नौ है ज० गमातीन नाणन्त सात सात (१) अव.. गाहाना अंगुलके असंख्यातमें भाग (१) दृष्ठो मिथ्यात्वकि (३) मवानदोय (१) योगकायाको (५) आयुप्य अन्तर महुर्तका (६)