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चाहे उठे, न उठे, आदर-सत्कार दे, न भी दे, वन्दन करे, न भी . करे, खमावे, न भी खमावे, तो भी आराधिक पदके अभिलाषी मुनिको वहां जाके भी खमतखामणा करना. बृहत्कल्पसूत्र.)
आलोचना किसके पास करना ? अपना आचार्योपाध्याय, गीतार्थ, बहुश्रुत, उक्त दश (१८ गुणोंके धारकके पास आलोचना करना. अगर उन्होंका योग न हो तो उक्त १० गुणोंके धारक संभोगी साधुवोंके पास आलाचना करे. उन्होंका योग न हो तो अन्य संभोगी साधुवोंके पास आलोचना करे. उन्होंका योग न हो तो रुप साधु (रजोहरण, मुखवत्रिकाका ही धारक है ) गीतार्थ होनेसे उखके पास भी आलोचना करना. उन्होंके अभावमें पच्छकाडा श्रावक (दीक्षासे गिरा हुवा, परन्तु है गीतार्थ), उन्होंके अभावमें सुविहित आचार्यसे प्रतिष्ठा करी हुइ जिनप्रतिमाके पास जाके शुद्ध हृदयसे आलोचना करे, उन्होंके अभावमें ग्राम यावत् राजधानीके बाहार, अर्थात् एकान्त जंगलमें जाके सिद्ध भगवानकी साक्षीसे आलोचना करे. ( व्यवहारसूत्र.)
मुनि, गौचरी आदि गये हुवेको कोइ दोष लग जावे, वह साधु, निशिथ सूत्रका जानकार होनेसे वहांपर ही प्रायश्चित्त ग्रहन कर लेवे, और आचार्य पर आधार रखे कि - मैं इतना प्रायश्चित्त लीया है, फिर आचार्य महाराज इसमें न्यूनाधिक करेंगा, वह मुझे प्रमाण है. ऐसा कर उपाश्रय आते बखत रहस्तेमे काल कर जावे तो वह मुनि आराधिक है,जिसका २४ भांगा है. भावार्थकोइ योग न हो तो स्वयं शास्त्राधारसे आलोचना कर प्रायश्चित्त ले लेनेसे भी आराधिक हो सक्ते है. ( भगवतीसूत्र ।
निशिथसूत्रके १९ उद्देशाओंमे च्यार प्रकार के प्रायश्चित्त ब. तलाये है.