________________
( १ ) लघुमासिक. ( २ ) गुरु मासिक.
(३) लघु चातुर्मासिक.
३२३
( ४ ) गुरु चातुर्मासिक. तथा इसी सूत्रके वीसवां उद्देशामेंमासिक, दो मासिक, तीन मासिक, च्यार मासिक, पांच मासिक और छे मासिक. इस प्रायश्चित्तोंमे प्रत्येक प्रायश्चित्तके तीन तीन भेद होते है
( १ ) प्रत्याख्यान प्रायश्विच.
(२) तपप्रायश्चित्त.
( ३ ) छेद प्रायश्चित्त. इस तीनों प्रकारके प्रायश्चित्तोंका भी पुनः तीन तीन भेद होते है. (१) जघन्य, (२) मध्यम, (३) उत्कृष्ट.
जैसे ( १ ) प्रत्याख्यान प्रायश्चित्त, जघन्यमें एकासना, मध्यमें विग (नीषी), उत्कृष्टमें आंबिलके प्रत्याख्यानका प्रायश्चित्त दीया जाता है. एवं तप और छेद.
किसी मुनिने मासिक प्रायश्चित्त स्थान सेवन कर, उस दोषकी आलोचना किसी गीतार्थ, बहुश्रुत आचार्य आदिके समीप करी है. अब उस साधुकी आलोचना श्रवण करती बखत वचार करे कि - इसने यह प्रायश्चित्त स्थान किस अभिप्रायले
धन कीया है ? क्या राग, द्वेष, विषय, कषाय, स्वार्थ, इन्द्रिय वश, कुतूहल प्रकृति - स्वभावसे ? धर्मरक्षण निमित्त ? शासन सेवा निमित्त ? गुरुभक्ति निमित्त ? शिष्यको पठन पाठनके वास्ते ? अपने ज्ञानाभ्यास वास्ते ? आपदा आनेसे ? रोगादि विशेष कारणसे ? अरण्य उल्लंघन करनेसे ? किसी देशमें अज्ञातको उप