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રૂરલ
पी, परम संवेग रंगमे रंगे हुवे, अखिलाचारी, ज्ञान, दर्शन, चारित्र संयुक्त, पांच समिति समिता, तीन गुप्ति गुप्ता, सत्तरा प्रकारका संयम, बारह भेद तप, दश प्रकारके यतिधर्मका धारक, चरण, करण प्रतिपालक, जिन्हों महा पुरुषोंकी कीर्तिकि ध्वनि, गगनमंडलमें गर्जना कर रही थी, जिन्होंके स्याद्वादके सिंहनादसे बादी रुप गज-हस्ती पलायमान होते थे, जिन्होंका सम्यक् ज्ञानरुप सूर्य, भूमंडलके अज्ञानरुप अन्धकारका नाश कर भव्य नीवोंके हृदय-कमलमें उद्योत कर रहा था, जिन्होंकी अमृतमय देश नारुप सुधारससे आकर्षित हुवे चतुर्विध संघरुप भ्रमरोंके सुस्वरसे नीकलते हुये उज्वल यशरुप गुंजार शब्दका ध्वनि, तीन लोकमें व्याप्त हो रहा थी, ऐसे श्री वैशाखागणि आचार्य महाराजने स्व-पर आत्मावों के कल्याण निमित्त. इस महा प्रभा वक लघु निशिथसूत्रको लिखके अपने शिष्यों, परशिष्योंपर बहुत उपकार कीया है. इतनाही नहि बल्के वर्तमान और भविष्यमें होनेवाले साधु साध्वीयों पर भी बडा भारी उपकार कीया है.
इति श्री निशिथसूत्र -- वीशवा उद्देशाका संक्षिप्त सार.
इति श्री लघु निशिथसूत्र-समाप्त.
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समाप्त. rox-0000 -0. .)
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