________________
રૂર? छे मास तकका छेद कीया जावे, अर्थात् इतना मासपर्यायसे कम कर दीया जाय. जैसे एक मुनि, दीक्षा ग्रहनके बादमें दुसरा मु. निने तीन मास पीछे दीक्षा लीथी, उस बखत पीछेसे दीक्षा लेने. वाला मुनि, पहले दीक्षितको वन्दन करे. अब वह पहला दीक्षित मुनि, किसी प्रकारका दोष सेवन करनेसे उसे चातुर्मासिक छेद प्रायश्चित्त आया है. जिससे उसका दीक्षापर्याय च्यार मास कम कर दीया. फिर वह तीन मास पीछेसे दीक्षा लीथी, उसको वह पूर्वदीक्षित मुनि वन्दना करे.
(८) मूल-चाहे कितना ही वर्षों की दीक्षा क्यों न हो, प. रन्तु आठवा प्रायश्रित्त स्थान सेवन करनेसे उस मुनिकी मूल दीक्षाको छेदके उस दिन फिरसे दीक्षा दी जाती है. यह मुनि, सर्व मुनियोंसे दीक्षापर्यायमें लघु माना जावेगा.
(९) अनुठ्ठया
(१०) पाडूचिया-यह दोय प्रायश्चित्त सेवन करनेवालोंको पुनः गृहस्थ लिंग धारण करवायके दीक्षा दी जाती है. इसकी विधि शास्त्रोमें विस्तारसे बतलाइ है, परन्तु वह इस कालमें घिच्छेद माना जाता है.
(स्थानांगसूत्र.) साधुवोंको अगर कोई दोष लग जावे तो उसी बखत आलोचना करलेना चाहिये.विगर आलोचना किया गृहस्थोंके वहां गौचरी न जाना, विहारभूमि न जाना, ग्रामानुग्राम विहार नहीं करना. कारण-आयुष्यका विश्वास नहीं है. अगर विराधिकपणेमें आयुष्य बन्ध जावे, तो भविष्यमें बड़ा भारी नुकशान होता है. अगर किसी साधुवोंके आपसमें कषायादि हुवा हो, उस समय लघु साधु खमावे नहीं तो वृद्ध साधुषोंको वहां जाके खमाना. लघु:साधु