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३०४ (३०) ,, पासत्यावोंको सूत्रार्थकी वाचना देवे. ३ (३१) उन्होसे वाचना लेवे. ३ (३२--३३) एवं उसन्नावोंको वाचना देवे, लेवे. (३४.३५ ) एवं कुशीलीयोंके दो सूत्र.
( ३६-३७ ) एवं दो सूत्र, नित्यपिंड भोगवनेवालोंका तथा नित्य एक स्थान निवास करनेवालोंका, उसे वाचना देवे-लेवे.
( ३८- ३९ ) एवं संसक्ताको वाचना देवे तथा लेवे. ।
भावार्थ-पासत्थावोंको वाचना देनेसे उन्होंके साथ परिचय बढे, उन्होंका कुछ असर, अपने शिष्य समुदायमे भी हो तथा लोक व्यवहार अशुद्ध होनेसे शंका होगाकि इस दोनों मंडलका आचार-व्यवहार सदृश होगा. तथा पासत्थावोंसे वा. चना लेनेमें वहही दोष है. और उसका विनय, भक्ति, वन्दन, नमस्कार भी करना पडे. इत्यादि, वास्ते ऐसा हीनाचारी पासस्थावोंके पास, न तो वाचना लेना, और न ऐसेको वाचना देना.
उपर लिखे ३९ बोलोसे एक भी बोल कोइ साधु साध्वी सेवन करेगा, उसको लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होगा. प्रायश्चित्त विधि देखो वीसवा उद्देशामें.
इति श्री निशिथसूत्र-उन्नीसवा उद्देशाका संक्षिप्तसार.
(२०) श्री निशिथसूत्र-वीसवा उद्देशा.
(१) 'जो कोइ साधु साध्वी' एक मासिक प्रायश्चित्त स्थानक (पहला उद्देशासे पांचवा उद्देशातकके बोल) सेवन कर माया