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(६३) च्यार मास दश दिनका तप करते अन्तरेमें एक मासिक प्रा० स्थान सेवन करने वालेको पन्दरा दिनकी आलो. चना पूर्व तपके साथ मिला देनेसे ४-१०-१५ च्यार मास पंचवीश अहोरात्री होती है.
(६४) च्यार मास पंचवीश अहोरात्रिका तप करते अन्त. रमें दो मासिक प्रा० स्थान सेवन करनेवालेको वीश रात्रिकी आलोचना, पर्वतपके साथ मिला देनेसे पंच मास और पंदरा अहोरात्रि होती है.
(६९) पांच मास पंदरा रात्रिका तप करते अन्तरामें एक मासिक प्रा० स्थान सेवन करनेवालेको पन्दरा अहोरात्रिकी आ. लोचना, पूर्वतपके साथ सामेल कर देनेसे छे मासिक तप होता है. इस्के आगे किसी प्रकारका प्रायश्चित्त नहीं है. अगर तप करते प्रायश्चित्तका स्थान सेवन करते है, उसकी आलोचना देनेवाले आचार्यादि, उस दुर्बल शरीरवाला तपस्वी मुनिको मधुरतासे उस आलोचनाका कारण, हेतु, अर्थ बतलावे कि तुमारा प्रायश्चित्त स्थान तो एक मासिक, दो मासिकका है, परन्तु पेस्तरसे तुमारी तपश्चर्या चल रही है. जिसके जरिये तुमारा शरीरकी स्थिति निर्बल है. लगतार तप करने में जोर भी ज्यादा प. डता है. इस वास्ते इस हेतु-कारणसे यह आलोच ना दी जाती है. कृत पापका तप करना महा निर्जराका हेतु है. अगर तुमारा उत्थानादि मंद हो तो मेरा साधु तुमारी वैयावञ्च करेंगा तु शान्तिसे तप कर अपना प्रायश्चित्त पूर्ण करो. इत्यादि. २०
आलोचना सुननेकी तथा प्रायश्चित्त देनेकी विधि अन्य स्थानौसे यहांपर लिखी जाती है.
आलोचना सुननेवाले.