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भावार्थ-कबी वस्तु लेते, रखते पोसके पडजानेसे आत्मघात, संयमघात, जीवादिका उपमर्दन होता है. पीच्छा लेप करनेमे आरंभ होता है.
( २४५),, पृथ्वीकायपर रखा हुषा अशनाहि च्यार आहार उठाके मुनिको देवे, वह आहार मुनिग्रहन करे, ३ .
(२४६ ) एवं अप्कायपर. (२४७ ) एवं तेउकायपर.
( २४८) वनस्पतिकाय पर रखा हुवा आहार देवे, उसे मुनि ग्रहन करे. ३
भावार्थ-ऐसा आहार लेनेसे जीवोंकी विराधना होती है. आज्ञाका भंग व्यवहार अशुद्ध है.
( २४९ ) ,, अति उप्ण, गरमागरम आहार पाणी देते समय गुहस्थ, हाथसे, मुंहसे, सुपडेसे, ताडके पंखेसे, पत्रसे, शा. खाके, शाखाके खंडसे हवा, लगाके जिससे वायुकायकी विराधना होती है, ऐसा आहार मुनि ग्रहन करे. ६
( २५० ) ,, अति उष्ण-गरमागरम आहार पाणी मुनि ग्रहन करे.
भावार्थ-उसमे अग्निकायके जीव प्रदेश होते है. जीससे जीव हिंसा का पाप लगता है.
(२५१ ) ., उसामणका पाणी, बरतन धोया हुवा पाणी, चावल धोया हुवा पाणी, बोर धोया हुवा पाणी, तिल• तुस० जव० भूसा० लोहादि गरम कर बुजाया हुवा पाणी, कांजीका पाणी, आम्र धोया हुषा पाणी, शुद्धोदक जो उक्त पदार्थों धोयोंको ज्यादा वखत नहीं हुवा है, जिसका रस नहीं बदला है, जिस