________________
२५८
जंगलसे आजावे, तो यह रसी (दोरी ) यहां रखता हुं. तुम उस .. पशुवोंको बांध देना, तथा यह बंधे हुवे गौ, भंसादि पशुवोंको छोड देना. उस समय मुनि, मकान में रहने के कारण ऐसी दीनता लावे कि-अगर इसका कार्य में नहीं करूंगा, तो मुजे मकानमें ठेरनेको न देंगा, तथा मकानसे निकाल देगा, तो मैं कहां ठेरुंगा? ऐसी दीनवृत्तिको धारण कर, मुनि, उस गृहस्थका वचन स्वीकार कर, उक्त रसीयोंसे त्रस-प्राणी जीवोंको बांधे तथा छोडे तो प्राय चित्तका भागी होता है. तात्पर्य यह है कि-मुनियों को सदैव निःस्पृहता-निर्भयता रखना चाहिये. मकान न मिले तो जंगलमें वृक्ष नीचे भी ठेर जाना, परन्तु ऐसा पराधीन हो, गृहस्थोंका कार्य न करना चाहिये.*
* इस पाठका तेराहान्थी लोग बिलकुल मिथ्या अर्थ कर जीवदयाकी जड पर कुठार चलाते हैं. वह लोग कहते हैं कि-'कालूगं' अनुकंवा लाके मुनि जीयों को बांधे नहीं, और छोडे नहीं, तथा गृहस्थ लोग मरते हुवे जीवोंको छोडावे, उसको अच्छा समझनेमें मुनिको पाप लगता हैं, तो छोडानेवाले गृहस्थोंको पुन्य कहांस ? वहांतक पहुंच गये हैं कि-हजारों गौसे भरा हवा मकावमें अग्नि लग जावे तथा कोइ महात्मावोंको दुष्ट जन फांसी लगावे, उसे बचानेमें भी महापाप लगता है. ऐसा तेराहपन्थीयोंका कहना है.
बुद्धिमान् विचार कर सक्ते है कि भगवान् नेमिनाथ तीर्थकर, आने विवाह समय हजारों पशु, पक्षीयों की अनुकंपा कर, ऊन्हों को जीवितदान दीया था. परमात्मा पार्श्वप्रभुने अनि जलता हुवा नागको बचाया. भगवान् शांतिनाथने पूर्वभवमें पारेवाका प्राण बचाया. भगवान् वीरप्रभुए मोशालाको बचाया. और तीर्थकरोने खुद अपने मुखारविंदसे अनुकंपाको सम्यक्त्वका चौथा लक्षण बतलाया हैं. तो फिर पन्थी लोग किस आधारसे कहते है कि अनुकंपा नहीं करना. अगर वह लोग मिथ्यात्वके प्रबल उदयसे कह भी देवे, तो आर्य मनुष्य उसे कैसे मान सकेगा ? धिशेष खुलासा अनुकंपाछत्तीसीसे देखो.