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२६७ कितनेक आदमी उन्होंको मारनेके लीये जा रहे हो, उस समय मुनिको रहस्ता पूछे, तथा
(३०) कोइ शिकारी दिग्मूढ हुवे रहस्ता पूछे, उसे मुनि रहस्ता बतावे, तथा दुसरे भी अन्यतीर्थी गृहस्थोंको रहस्ता बतावे. कारण वह आगे जाता हुवा दिग्मूढतासे रहस्ता मूल नावे, दूसरे रहस्ते चला जावे, कष्ट पडनेपर मुनिपर कोप करे इत्यादि. _(३१) धातु निधान, अन्यतीर्थी---गृहस्थोंको बतलावे. आप गृहस्थपणेमें निधान जमीनमें रखा, वह दीक्षा लेते समय किसीको कहना भूल गया था, फिर दीक्षा लेने के बाद स्मृति होनेपर अपने रागीयोंको बतलावे तथा दीक्षा लेने के बादमें कहांपर ही निधान देखा हुवा बतावे. कारण वह निधान अनर्थका ही हेतु होता है, मोक्षमार्गमें विघ्नभूत है.
भावार्थ-यह सब सूत्र अन्यतीर्थीयों, गृहस्थोंके लीये कहा है. मुनि, गृहस्थावास अनर्थका हेतु, संसारभ्रमणका कारण जाण त्याग कीया था, फिर उक्त क्रिया गृहस्थलोगोंको बतलानेसे अपना नियमका भंग, गृहस्थ परिचय, ध्यानमें व्याघात इत्यादि अनेक नुकशान होता है. वास्ते इस अलाय बलायसे अलग ही रहना अच्छा है.
(३२),, अपना शरीर ( मुंह ) पात्रेमें देखे. (३३) काचमें देखे. (३४) तलवारमें देखे. (३५.) मणिमें देखे. ( ३६ ) पाणीमें देखे.