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(४७) एवं प्रशंसा करे. ३ एवं दो सूत्र कुशीलीयाभ्रष्टाचारी साधुवोंका.
( ४८-४९ ) एवं दो सूत्र नित्य एक घरका पिंड ( आहार ) तथा शक्तिवान् होने पर भी एक स्थान निवास करनेवालोंका.
( ५०-५१ ) एवं दो सूत्र संसक्ता -पासत्था मिलनेसे आप पासत्थ हो, संवेगी मिलने से आप संवेगी हो, ऐसे साधुवोंका.
( ५२-५३ ) एवं दो सूत्र कथगा - स्वाध्याय ध्यान छोडके दिनभर खीकथा, राजकथा, देशकथा तथा भक्तकथा करनेवालोंका.
( ५४-५५) एवं दो सूत्र पासणिया- ग्राम, नगर, बाग, बगीचे, घर, बाजार इत्यादि पदार्थ देखते फिरे, ऐसे साधुवोंका.
( ५६-५७ ) एवं दो सूत्र ममत्वोंपाधि धारण करनेवालों का. जैसे यह मेरा - यह मेरा करे ऐसे साधुवोंका.
( ५८-५९ ) एवं दो सूत्र संप्रसारिक जहां जावे. वहां ममस्वभावसे प्रसारा करते रहे, गृहस्थोंके कार्य में अनुमति देता रहे. ( ६०-६१ ) ऐसे साधुवोंको वंदन करे, प्रशंसा करे. ३
भावार्थ - यह सब कार्य जिनाज्ञा विरुद्ध है. मोक्षमार्गमें विघ्न करनेवाला है, असंयमवर्धक है. इस अकृत्य कार्योंको धारण करनेवाले बालजीव, मुनिवेषको लज्जित करनेवाला है. ऐसेका वन्दन - नमस्कार तथा तारीफ करनेसे शिथिलाचार की पुष्टि होती है. उस भ्रष्टाचारी साधुवोंको एक किसमकी सहायता मिलती है. वास्ते उक्त साधुवोंको वन्दन नमस्कार करनेवाला भी प्रायश्चित्तका भागी होता है.
(६२), घृत्रीकर्म आहार - गृहस्थोंके बालबचको खेलाके आहार ग्रहन करे. ३