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भावार्थ-जहां जैसा पदार्थ, वहां ऐसी भावना रहेती है. वास्ते एसे स्थानोंमें नही ठेरे अगर गौचरी आदिसे जाना हो तो कार्य होनेसे शीघ्रतासे लोट जावे.
(४), इक्षु (सेलडीके सांठा) को चूसे. यावत् पंदरहवे उद्देशामें आम्रफलके आठ सूत्र कहा है, इसी माफिक यहां भी समझना. भावना पूर्ववत्. ११
(१२),, अटवी, अरण्य, विषमस्थान जानेवालोंका तथा अटवीमें प्रवेश करते हुवेका अशनादि च्यार प्रकारका आहार लेवे.३
भावार्थ-कोइ काष्ठवृत्ति करनेवाला अपना निर्वाह हो, इतना आहार लाया है, उसे दीनतासे मुनि याचनेपर अगर आहार मुनिको दे देवेंगा, तो फिर उसे अपने लीये दुसरा आरंभ करना होगा, फलादि सचित्त भक्षण करना पडेगा या बडे कष्टसे अटवी उल्लंघन करेंगा. इत्यादि दोषोंका संभव है.
(१३),, उत्तम गुणोंके धारक, पंचमहाव्रत पालक, जितेंद्रिय. गीतार्थ, जैन प्रभावक, क्षात्यादि गुण संयुक्त मुनियोंको पासत्थे, भ्रष्टाचारी आदि कहे, निंदा करे. ३
(१४) शिथिलाचारी, पासत्थावोंको उत्तम साधु कहे. ३
(१५ ) गीतार्थ, संवेगी, महापुरुषोंसे विभूषित गच्छको पासत्थोंका गच्छ कहे. ३
(१६) पासत्योंके गच्छको गीतार्थों का गच्छ कहै. ३
भावार्थ-द्वेषके वश हो अच्छाको बुरा, .रागके वश हो खुराको अच्छा कहे. यह दृष्टि विपर्यास है. इससे मिथ्यात्वकी पुष्टि, शिथिलाचारीयोंकी पुष्टि, उत्तम गीतार्थोंको अपमान, शा. सनकी हीलना- इत्यादि अनेक दोषोंका संभव होता है.