________________
२७९
एवं पासणियोंका च्यार सूत्र १०८-१०९-११०-१११. भावना पूर्ववत् समझना.
उक्त शिथिलाचारीयोंसे परिचय करनेसे देखादेख अपनी प्रवृत्ति शिथिल होगी. लोकशंका, शासनहीलना, पासत्थावका पोषण इत्यादि दोषोंका सभव है.
( ११२ ) जानकार गृहस्थ साधुवोंके पूर्व सज्जनादि, वकी आमंत्रणा करे, उस समय मुनि उस वस्रकी जांच पूछ, गवेषणा न करे. ३
ܙ
( ११३ ) जो वस्त्र, गृहस्थ लोक नित्य पहेरते हो, स्नान, मज्जन के समय पहेरते हो, रात्रि समय स्त्री परिचय समय पहेरते हो तथा उत्सव समय, राजद्वार जाते समय ( बहुमूल्य ) पहेरते हो, ऐसे वस्र ग्रहन करे.
भावार्थ- सज्जनादि पूर्व स्नेह कारण बहु मूल्य दोषित पत्र देता हो, तो मुनिको पेस्तर जांच पूछ करना चाहिये. तथा नित्यादि वस्त्र लेनेसे, वह वस्त्र अशुचि तथा विषय वर्धक होता है.
( ११४ ),, साधु, साध्वी अपने शरीरकी विभूषा करनेके लीये अपने पावको एकवार मसले, दाबे, चंपे, वारवार मसले, दाबे, चंपे, एवं विभूषा निमित्त उक्त कार्य अन्य साधुवोंसे करावे, अन्य साधु उक्त कार्य करतेको अच्छा समझे, तारीफ करे, सहायता करे, करावे, करतेको अच्छा समझे. एवं यावत् तीसरे उद्देशामें ५६ सूत्रों कहा है, वह विभूषा निमित्त यावत् ग्रामानुग्राम विहार करते अपने शिरछत्र धरावे. ३ एवं १६९ ( १७० ) अपने शरीरकी विभूषा निमित्त वख, कंबल, रजोहरण और भी किसी प्रकारका उपकरण धारण करे, धारण करावे, करते को अच्छा समझे.
पात्र,
37