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२८३ भावार्थ-वस्त्र, पोत्र, छीन लेवे, मार पीट करे द्वेष बढे, यावत् पतित करे. अगर स्वयं शक्तिमान् , विद्यादि चमस्कार, स्थिर संहननवाला, उपकार लाभालाभका कारण जा. नता हो, वह जा भी सक्ते है.
(२७) ,, दुगंछणिक कुल. (१) स्वल्प काल सुवा सुतकवाला घर.
(२) दीर्घ काल शुद्रादि इन्होंके घरसे अशनादि च्यार प्रकारको आहार ग्रहन करे. ३
( २८ ) एवं वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण ग्रहन करे. ३ (२९) एवं शय्या (मकान । संस्तारक ग्रहन करे. ३
भावार्थ-उत्तम जातिके मनुष्य, जिस कुलसे परेज रखते हो, जिसके हाथका. पाणी तक भी नहीं पीते हो, ऐसे कुलका आहार पाणी लेना, साधुके वास्ते मना है.
(३०) ,, दुगछणिक कुलमें जाके स्वाध्याय करे. ३ (३१) एवं शिष्यको वाचना देवे. (३२) सदुपदेश देवे. (३३) स्वाध्याय करने की आज्ञा देवे. (३४) दुगंछणिक कुल ( घर ) में सूत्रकी वाचना लेवे. (३५) स्वाध्याय ( अर्थ ) लेये. ( ३६ ) स्वाध्यायकी आवृत्ति करे.
भावार्थ-चांडालादि तथा सुवासुतकवालोंके घरमें सदैव अस्वाध्यायही रहती है. वहांपर सूत्र सिद्धांतका पठन पाठन करना मना है. तथा दुगंछ अर्थात् लोकव्यवहारमै निंदनीय कार्य करनेवाला, जिसकी लोक दुगंछा करते है, पास न बैठे, न बै