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ર૭૨
(७) कथंचित् हाथ, पग, कान, नाक, होठ छेदाया हुषा है, किसी प्रकारकी अति बेमारी हो, उसको परिमाणसे अधिक पात्र नहीं देवे, नहीं दिलावे, नहीं देते हुवेको अच्छा समझे.
भावार्थ-आरोग्य अवस्थामें अधिक पात्र देनेसे लोलूपता बढे, उपाधि बढे, ' उपाधिकी पोट समाधिसे न्यारी,' अगर रोगादि कारण हो, तो उसे अधिक पात्र देनाही चाहिये. बेमार रोगवालाको सहायता देना, मुनियोंका अवश्य कर्त्तव्य है.
(८), अयोग्य, अस्थिर, रखने योग्य न हो, स्वल्प समय चलने काबील न हो, जिसे यतना पूर्वक गौचरी नहीं लासके, ऐसा पात्रको धारण करे. ३
(९) अच्छा मजबूत हो, स्थिर हो, गौचरी लाने योग्य हो, मुनिको धारण करने योग्य हो, ऐसा पात्रको धारण न करे. ३
भावार्थ-अयोग्य, अस्थिर पात्र सुन्दर है तथा मजबूत पात्र देखने में अच्छा नहीं दीसता है. परन्तु मुनियोंको अच्छा खराबका ख्याल नहीं रखना चाहिये.
(१०), अच्छा वर्णवाला सुन्दर पात्र मिलने पर वैराग्यका ढोंग देखानेके लीये उसे विवर्ण करे.३ .
(११) विवर्णपात्र मिलने पर मोहनीय प्रकृतिको खुश करनेको सुवर्णवोला करे. ३
भावार्थ-जैसा मिले, वेसेसे ही गुजरान कर लेना चाहिये.
(१२),, नवा पात्रा ग्रहन करके तैल, घृत, मक्खन, चरबी कर मसले लेप करे.३
(१३),, नवा पात्रा ग्रहन कर उसके लोद्रव द्रव्य, कोकण