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ર૭૪ (३७) कुट्टीपर, भीतपर, शिलापर, खुले अवकाशमें पात्रोंको . आताप लगानेको रखे. ३
(३८) आदि भीतके खंदपर, छत्रीके शिखरपर, मांचापर, मालापर, प्रासादपर, हवेलीपर और भी किसी प्रकारको उची जगाहपर, विषमस्थानपर, मुश्कीलसे रखा जावे, मुश्कीलसे उठाया जावे, लेते रखते पडजानेका संभव हो, ऐसे स्थानोमें पात्रोंको आताप लगानेको रखे. ३ ____ भावार्थ-पात्रा रखते उतारते आप स्वयं पीसलके पडे, तो आत्मघात, संयमघात तथा पात्रा तूटे फूटे तो आरंभ बढे, उसको अच्छे करनेमें वखत खरच करना पडे इत्यादि दोषका संभव है.
(३९) ,, गृहस्थके वह पात्रामें पृथ्वीकाय (लूणादि ) भरा हुवा है उसको निकालके मुनिको पात्र देवे, उस पात्रको मुनि ग्रहन करे.३
(४०) एवं अप्काय. (४१) एवं तेउकाय. ( राख उपर अंगार रख ताप करते है.) (४२) वनस्पति.
(४३) एवं कन्द, मूल, पत्र, पुष्प, फल, बीज निकाल पात्रा देवे, उस पात्रको मुनि ग्रहन करे. ३ जीव विराधना होती है.
(४४), पात्रामें औषधि (गहुं, जव, जवारादि) पडी हा, उसे निकालके पात्र देवे, वह पात्र मुनि ग्रहन करे. ३
(४२) एवं प्रस पाणी जीव निकाले. ३
(४६), पात्रको अनेक प्रकारको साधुके निमित्त कोरणी कर देवे, उसे मुनि ग्रहन करे. ३
(४७) ,, मुनिके गृहस्थावासके न्यातीले अन्यातीले, श्रावक