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(४०) रात्रिमें लाके दिनको बांधे. (४१) रात्रिमें लाके रात्रिमें बांधे.
भावार्थ-ज्यादा वखत रखनेसे जीवादिकी उत्पत्ति होती है, तथा कल्पदोष भी लगता है. इसी माफिक च्यार भांगा लेपणकी जातिकाभी समझना. भावार्थ-गड गुंबड होनेपर पोटीस विगेरे तथा शरीरके लेपन करनेमें आवे, तो उपर मुजब च्यार भांगाका दोषको छोडके निरवध औषध करना साधुका कल्प है. ४५
(४६),, अपनी उपधि ( वस्त्र, पात्र, पुस्तकादि ) अन्यतीर्थीयोंको तथा गृहस्थोंको देवे, वह अपने शिर उठाके स्थानां. तर पहुंचा देवे.
(४७) उसे उपधि उठानेके बदलेमें उसको अशनादि च्यार प्रकारका आहार देवे, दीलावे, देतेको अच्छा समझे.
भावार्थ-अपनी उपधि गृहस्थ तथा अन्यतीर्थीयोंको देने में संयमका व्याघात, गृहस्थोंकी खुशामत करना पडे, उपकरण फूटे तूटे, सचित्त पाणी आदिका संघटा होनेसे जीवोंकी हिंसा होवे, उसके पगार तथा आहारपाणीका बंदोबस्त करना पडे. इत्यादि दोष है.
(४८) ,, गंगा नदी, यमुना नदी, सीता नदी, ऐरावती नदी और मही नदी-यह पांचों महानदीयों, जिसका पाणी कितना है ( समुद्र समान ). ऐसी महा नदीयों एक मासमें दोय बार, तीन बार उतरे, उतरावे, अन्य उतरते हुवेको अच्छा समझे.
भावार्थ-वारवार उतरनेसे जीवोंकी विराधना होवे तथा किसी समय अनजानते ही विशेष पाणीका पूर आजानेसे आपघात, संयमघात हो, इत्यादि दोष लगते है.