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(१७४ ) अन्य साधुवोंको विपरीत बनावे, अर्थात् अपना स्वभाव संयममें रमणता करनेका है, इन्हसे विपरीत बने, हांसी टंटा, फिसादादि करे, करावे, करतेको सहायता देवे. ... ( १७५ ) , मुंहसे बजाने की वीणा करे, करावे, करते हुघेको सहायता देवे.
भावार्थ-भय, कुतूहल विपरीत होना, सब बालचेष्टा है, संयमको बाधाकारी है. वास्ते साधुवोंको पहलेसे ऐसा निमित्त कारणही नहीं रखना चाहिये. यह मोहनीय कर्मका उदय है. इसको बढानेसे बढता जावे, और कम करनेसे कमती हो जावे, वास्ते ऐसे अकृत्य कार्य करनेवालोंको प्रायश्चित्त बतलाया है.
( १७६ ) ,, दोय राजावोंका विरुद्ध पक्ष चल रहा है. उस समय साधु साध्वीयों वारवार गमनाममन करे. ३
भावार्थ-राजावोंको शंका होती है कि-यह कोइ परपक्षवाला साधुवेष धारण कर यहांका समाचार लेनेको आता होगा. तथा शुभाशुभका कारण होनेसे धर्मको-शासनको नुकशान होता है.
( १७७ , दिनका भोजन करनेवालोका अवगुनवाद बोले. जैसे एक सूर्य में दोय वार भोजन न करना इत्यादि.
(१७८ ) ,, रात्रिभोजनका गुणानुवाद बोले, जैसे रात्रिभोजन करना बहुत अच्छा है. इत्यादि.
( १७९ ) ,, पहले दिन भोजन ग्रहन कर, दुसरे दिन दि. नको भोजन करे. तथा पहली पोरसीमें भिक्षा ग्रहण कर चौथी पोरसीमें भोजन करे. ३
(१८० ) एवं दिनको अशनादि च्यार आहार ग्रहन कर रात्रिमें भोजन करे, ३