________________
રક
( १८१ ) रात्रिमें अशनादि च्यार आहार ग्रहन कर दिनको भोजन करे. ३
(१८२) एवं रात्रिमें अशनादि च्यार आहार ग्रहन कर राधिमें भोजन करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
भावार्थ-रात्रिमें आहार ग्रहन करने में तथा रात्रि भोजन करनेमें सुक्ष्म जीवोंको विराधना होती है. तथा प्रथम पोरसीमें लाया आहार, चरम पोरसीमें भोगवनेसे कल्पातिकम दोष लगता है.
(१८३), कोइ गाढागाढी कारण विगर अशनादि च्यार प्रकारका आहार, रात्रिम वासी रखे, रखावे, रखतेको अच्छा समझे.
( १८४ ) अति कारणसे अशनादि च्यार आहार, रात्रिम वासी रखा हुवाको दुसरे दिन बिन्दुमात्र स्वयं भोगवे, अन्य साधुको देवे. ३
भावार्थ-कबी गोचरीमें आहार अधिक आगया, तथा गोचरी लाने के बाद साधुवोंको बुखारादि बेमारीके कारणसे आहार बढ गया, वखत कमती हो, परठनेका स्थान दूर है, तथा घनघोर वर्षाद वर्ष रही है. ऐसे कारणसे वह बचा हुवा आहार रह भी जावे तो उसको दुसरे दिन नहीं भोगवना चाहिये, रात्रि समय रखनेका अवसर हो, तो राखतें मसल देना चाहिये. ताके उसमें जीवोत्पत्ति न हो. अगर रात्रिवासी रहा हुवा अशनादि आहारको मुनि खाने की इच्छा भी करे, उसे यह प्रायश्चित्त बत. लाया है.
(१८५ ) ,, कोइ अनार्यलोक मांस, मदिरादिका भोजन स्वयं अपने लीये तथा आये हुवे पाहुणे ( महिमान ) के लीये