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(६१), साधु साध्वीयोंके उद्देश (निमित्त) बनाये हुवे मकानमें साधु साध्वी प्रवेश करे. ३
(६२) एवं साधु के निमित्त मकान लींपाया हो, छप्परबंधी कराइ हो, नया दरवाजा कराया हो-उस मकानमें प्रवेश करे.३
(६३) एवं अन्दरसे कोई भी वस्तु साधुवोंके लीये बाहार निकाले, काजा, कचरा निकाल साफ करे, उस मकानमें मुनि प्रवेश करे, वहां ठहरे. ३
भावार्थ-जहां साधुवोंके लीये जीवादिका बाद हो ऐसा मकानमें साधु ठहरे, वह प्रायश्चित्तका भागी होता है.
(६४), जिस साधुवोंके साथ अपना ' संभोग' आहारादि लेना देना नहीं है, और क्षात्यादि गुण तथा समाचारी मिलती नहीं है, उसको संभोग करनेका कहे. ३
(६५), वन, पात्र. कम्बल, रजोहरण अच्छा मजबुत बहुतकाल चलने योग्य है. उसको फाडतोड टुकडे कर परठे, परठावे. ३
(६६) एवं तुंबाका पात्र, काष्ठका पात्र, मट्टीका पात्र मजबुत रखने योग्य, बहुत काल चलने योग्यको तोडफोड परठे. ३
(६७) एवं दंडा, लट्ठी, खापटी, वांससूचि, चलने योग्यको परठे. ३
भावार्थ-किसी प्रामादिमें सामान्य वस्तु मिली हो, और बडे नगरमें वह ही वस्तु अच्छी मिलती हो, तब पुद्गलानंदी विचार करे-इसको तोडफोडके परठ दे, और अच्छी दुसरी वस्तु याच ले-इत्यादि परन्तु ऐसा करनेवाले साधुवोंको निर्दय कहा है. वह प्रायश्चित्तका भागी होता है.