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(८) एवं वर्तमान कालका. (९.) एवं अनागत कालका निमित्त कहे, प्रकाश करे.
भावार्थ-निमित्त प्रकाश करनेसे स्वाध्याय ध्यानमें विघ्न होवे, राग द्वेषकी वृद्धि होवे, अप्रतीतिका कारण-इत्यादि दोषों. का संभव है.
( १० ,, अन्य किसी आचार्यका शिष्यको भरममें (भ्र. ममें डाल देवे, चित्तको व्यग्र कर अपनी तर्फ रखने की कोशीश करे.३
(११) ,, एवं प्रशिष्यको भरम (भ्रम) में डाल, दिशामुग्ध बनाके अपने साथ ले जावे तथा वस्त्र, पात्र, ज्ञानसूत्रादिका लोभ दे, भरमाके ले जावे. ३
(१२),, किसी आचार्य के पास कोइ गृहस्थ दीक्षा लेता हो, उसको आचार्यजीका अवगुणवाद बोल ( यह तो लघु है, होनाचारी है, अज्ञान है-इत्यादि ) उस दीक्षा लेनेवालाका चित्त अपनी तर्फ आकर्षित करे. ३
(१३) एवं एक आचार्य से अरुचि कराके दुसरों के साथ भे. जवा दे.
भावार्थ-ऐसा अकृत्य कार्य करनेसे तीसरा महाव्रतका भंग होता है. साधुवोंकी प्रतीति नहीं रहती है. एक ऐसा कार्य करनेसे दुसरा भी देखादेखी तथा द्वेषके मारे करेंगा, तो साधुमर्यादा तथा तीर्थकरोंके मार्गका भंग होगा.
(१४) ,, साधु साध्वीयोंके आपसमें क्लेश हो गया हो तो उस क्लेशका कारण प्रगट कीये विना, आलोचना कीया विगर, प्रायश्चित लीये विगर, खमतखामणा कीया विगर तीन रात्रिके उपरांत रहे तथा साथमें भोजन करे. ३