________________
ર૪૮ आदि लेनेका काम पडे, उस अपेक्षा यह विधि बतलाइ है. सा.. मान्यतासे तो साधु दुसरी तीसरी पौरुषीमें ही भिक्षा करते है.
(३७) ,, कोइ साधु साध्वीयोंको रात्रि समय तथा वैकाल (प्रतिक्रमणका बखत ) समय अगर आहार पाणी संयुक्त उगालो ( गुचलको ) आवे, उसको निर्जीव भूमिपर परठ देनेसे आज्ञाका भंग नहीं होता है. अगर पीछे भक्षण करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.
(३८) ,, किसी बीमार साधुको सुनके उसकी गवेषणा न करे.३
(३९ ) अमुक गाममें साधु बीमार है, ऐसा सुन आप दुसरे रहस्तेसे चला जावे, जाने कि-मैं उस गाममें जाउंगा तो बीमार साधुकी मुझे वैयावञ्च करना पडेगा. . ___ भावार्थ-ऐसा करनेसे निर्दयता होती है. साधुकी वैयावश्च करने में महान् लाभ है. साधुकी वैयावञ्च साधु न करेंगा, तो दुसरा कौन करेगा?
(४०) ,, कोइ साधु बीमार साधुके लीये दवाइ याचनेको गृहस्थोंके वहां गया, परन्तु वह दवाइ न मिली तो उस साधुने आचार्यादि वृद्धोंको कह देना चाहिये कि-मेरे अन्तरायका उ. दय है कि इस बीमार मुनिके योग्य दवाइ मुझे न मिली. अगर वापिस आयके ऐसा न कहे. वह मुनि प्रायश्चित्तका भागी होता है. कारण-आचार्यादि तो उस मुनिके विश्वासपर बैठे है.
(४१), दवाइ न मिलनेपर साधु पश्चात्ताप न करे. जैसे-अहो! मेरे कैसा अन्तराय कर्मका उदय हुवा है किइतनी याचना करनेपर भी इस बीमार साधुके योग्य दवाइ न मिली इत्यादि.