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भावार्थ--विगर खमतखामणा रहेगा, तो कारण पाके फिर भी उस क्लेशकी उदीरणा होगा.
( १५ ) ,, क्लेश करके अन्य आचार्य पाससे आये हुवेको तीन रात्रिसे अधिक अपने पास रखे. ३
भावार्थ-आये हुवे साधुको मधुर वचनोंसे समझाये कि-हे भद्र! तुमको तो जहां जावंगा, वहां ही संयम पालना है, तो फिर अपने आचार्यको ही क्यों छोडते हो, वापिस जावे, आचार्य महाराजकी वैयावच्च, विनय, भक्ति कर प्रसन्न करो. इत्यादि हित शिक्षा दे, क्लेशसे उपशान्त बनाके वापिस उसी आचार्यके पास भेजना. ऐसा कारणसे तीन रात्रि रख सक्ते है. जयादा रखे तो प्रायश्चित्तका भागी होता है.
(१६) ,, लघु प्रायश्चित्तवालेको गुरु प्रायश्चित कहै. ३ । द्वेषके कारणसे ..
(१७) एवं गुरु प्रायश्चित्तवालेको लघु प्रायश्चित्त कहे. ३ ( रागके कारणसे)
( १८ ) एवं लघु प्रायश्चित्तवालेको गुरु प्रायश्चित्त देवे. ३
( १९ ) गुरु प्रायश्चित्तवालेको लघु प्रायश्चित्त देवे. ३ भावना पूर्ववत्.
( २०) ,, लघु प्रायश्चित्त सेवन कीया हुवा साधुके साथ आहार पाणी करे. ३
(२१) , लघु प्रायश्चित्तका स्थान सेवन कीया है, उसे . आचार्य सुना है कि-अमुक साधुने लघु प्रायश्चित्त सेवन कीया है. फिर उसके साथ आहार पाणी करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.