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२४३ इस २६ बोलोंसे कोई भी बोल साधु साध्वीयों सेवन करे, करावे, करतेको अनुमोदन करे, अर्थात् अच्छा समझे. उस साधु साध्वीयोंको गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होगा. प्रायश्चित्त विधि देखो वीसचा उद्देशामें.
इति श्री निशिथसूत्र-नौवा उद्देशाका संक्षिप्त सार.
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(१०) श्री निशिथसूत्र-दशवा उद्देशाः
(१) 'जो कोइ साधु साध्वी' अपने आचार्य भगवानको तथा रत्नत्रयादिसे वृद्ध मुनियोंको कठोर (स्नेह रहित ) वचन बोले. ३
(२),, अपने आचार्य भगवान् तथा रत्नत्रयादिते वृद्ध मुनियोंको कर्कश ( मर्मभेदी ) वचन बोले. ३
(३) एवं कठोर (कर्कश ) कारी वचन बोले. ३ ( ४ ) एवं आचार्य भगवान्की आशातना करे. ३ भावार्थ-आशातना मिथ्यात्वका कारण है. (५), अनन्तकाय संयुक्त आहार करे. ३
भावार्थ-वस्तु अचित्त है, परन्तु नील, फूल, कन्द, मुलादिसे प्रतिबद्ध है. ऐसा आहार करनेवाला प्रायश्चितका भागी होता है.
(६), आदाकर्मी आहार (साधुके लीये ही बनाया गया हो) को ग्रहन करे. ३ . (७)., गतकालमें लाभालाभ सुख दुःख हुवा. उसका निमित्त प्रकाशे.३