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२३५ (३) ग्रामादिके कोट, अट्टाली, आठ हाथ परिमाण रहस्ता, खुरजों, गढ, दरवाजादि स्थानोंमें अकेला साधु अकेली श्री के साथ उक्त कार्यों करे. ३
(४) पाणीके स्थान तलाव, कुँवे, नदीपर, पाणी लानेके रहस्तेपर, पाणी आनेकी नेहरमें, पाणीका तीरपर, पाणीके उंच स्थानके मकान में अकेली स्त्रीसे उक्त कार्यों करे. ३
(५) शून्य घर, शून्य शाला, भग्न घर, भग्नशला, कुडाघर, कोष्ठागार आदि स्थानोंमे अकेली स्त्री साथ उक्त कार्यों करे. ३
(६) तृणघर, तृणशाला, तुसोंके घर, तुसोंकीशाला, भु. साका घर, भुंसाकी शालामे--अकेली स्त्रीके साथ उक्त कार्यों करे. ३
(७) रथशाला, रथघर, युगपात ( मैना ) को शाला, घरादिमें अकेली स्त्रीके साथ उक्त कार्यों करे. ३
(८) किरयाणाकी शाला, घर, बरतनोंकी शाला-घरमें अकेली स्त्री के साथ उक्त कार्यों करे. ३
(९) बेंलोंकी शाला-घर, तथा महा कुटुंबवालोंके विलास मकानादिमें अकेला स्त्री के साथ उक्त कार्यों करे. ३
भावार्थ-किसी स्थानपर भी अकेली स्त्री के साथ मुनि कथा वार्ता करेगा, तो लोगोंको अविश्वास होगा, मनोवृत्तिमलिन होगी, इत्यादि अनेक दोषोंकी उत्पत्तिका संभव है. वास्ते शास्त्रकारोंने मना कीया है.
(१०) रात्रिके समय तथा विकाल संध्या (श्याम) समय अनेक स्त्रीयोंकी अन्दर, स्त्रीयोंसे संसक्त,स्त्रीयोंके परिवारसे प्रवृत्त होके अपरिमित कथा कहे. ३
भावार्थ-दिनको भी स्त्रीयोंका परिचय करना मना है, तो