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२३६ रात्रिका कहना ही क्या ? नीतिकारोंने भी सुशील बहनोंको रात्रि . समय अपने घरसे बाहार जाना मना कीया है. ढुंढीये और तेरापन्थी साधु रात्रिमें व्याख्यानके लिये सेंकडो त्रीयोंको आमन्त्रण कर दुराचारको क्यों बढाते है ? ।
(११),, स्वगच्छ तथा परगच्छकी साध्वीके साथ ग्रा. मानुग्राम विहार करते कवी आप आगे, कबी साध्वी आगे चले जाने पर आप चिंतारुप समुद्रमें गिरा हुवा आर्तध्यान करता विहार करे तथा उक्त कार्यों करते रहे. ३ यह ११ सूत्रोंमें जैसे मुनियोंके लीये स्त्रीयोंके परिचयका निषेध बतलाया है, इसी माफिक साध्वीयोंको पुरुषों का परिचय नहीं करना चाहिये.
(१२), साधु साध्वीयोंके संसार संबंधी स्वजन हो चाहे अस्वजन हो, श्रावक हो चाहे अश्रावक हो, परंतु साधुके उपाश्रय आधीरात तथा संपूर्ण रात्रि उस गृहस्थोंको उपाश्रयमें रखे, रहने देवे. ३
(१३) एवं अगर गृहस्थ अपनेही दिलसे यहां रहा हो उसे साधु निषेध न करे, अनेरोंसे निषेध न करावे, निषेध न करते हुवे को अच्छा समझे वह मुनि प्रायश्चित्तका भागी होता है.
भावार्थ-रात्रि में गृहस्थोंके रहने से परिचय बढता है, संघट्टा होता है, साधुवोंके मल मूत्र समय कदाच उन लोगोंको दुगंध होवे, स्वाध्याय ध्यानमें विघ्न होवे इत्यादि दोषोंका संभव है. वास्ते गृहस्थोंको अपने पासमें रात्रिभर नहीं रखना. अगर विशाल मकानमें अपनी निश्रायमें एकाद कमरा कीया हो, अपने उपभोगमें आता हो, उस मकानकी यह बात है. शेष मकानमें श्रावक लोग सामायिक, पौषध तथा धर्मजागरणा कर भी सकते है.
(१४) अगर कोई ऐसा भी अवसर आ जावे, अथवा निषेध