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२४० . (७ )" राजाका राज्याभिषेक हुवे, उसके धान्य-कोठा-. रकी शाला, धन-खजानाकी शाला, दुध, दही, घृतादि स्थापन करनेकी शाला, राजाके पीने योग्य पाणीकी शाला, राजाके धारण करने योग्य वस्त्र, आभूषणकी शाला, इस छे शालाओंकी याचना न करी हो, पूछा न हो, गवेषणा न करी हो, परन्तु च्यार पांच रोज गृहस्थोंके घर गौचरीके लीये प्रवेश करे. ३
भावार्थ-उक्त छे शालाओंकी याचना कीये विना गौचरी जावे ता कदाच अनजानपणे उसी शालाओंमें चला जावे, तब राजादिको अप्रतीतिका कारण होता है. उस समय विषादिका प्रयोग हुवा हो तो साधुका अविश्वास होता है. इस वास्ते शास्त्रकारोंने प्रथमसे ही मुनियोंको सावचेत कीया है. ताके किसी प्रकोरसे दोषका संभव ही न रहे.
(८), राजा यावत् नगरसे बाहार जाता हुवा तथा नगरमें प्रवेश करते हुवेको देखनेको जानेके लीये एक कदम भरनेका मनसे अभिलाषा करे, करावे, करते हुवेको अच्छा समझे.
(९) एवं स्त्रीयों सर्वांग विभूषित, शंगार कर आती जातीको नेत्रोंसे देखने निमित्त एक कदम भरनेकी अभिलाषा करे. ३
(१०), राजादिक मृगादिका शिकार गया, वहांपर अशनादि च्यार प्रकारका आहार बनाया उस आहारसे आप ग्रहन करे.
(११), राजाके कोइ भेटणा-निजराणा आया है, उस समय राजसभा एकत्र हुइ है, मसलत कर रहे है, वह सभा वि. र्जन नहीं हुइ, विभाग नहीं पडा. अगर कोइ नवी जुनी होनेवाली है. उस हालतमें साधु आहार पाणीके लीये गौचरी जावे, अश. नादि च्यार आहार ग्रहन करे. ३