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૨૨૮ (१९), खातों पीतों बचा हुवा आहार देतो, भेटतों, बचा हुवा आहार, नाखतों बचा हुवा आहार, अन्य तीर्थीयोंके निमित्त, कृपणोंके निमित्त, गरीब लोगोंके निमित्त-ऐसा आहारादि ग्रहन करे, करावे, करतेको अच्छा समझे. भावना पूर्ववत् पंद्रहवां सूत्रकी माफिक समझना.
उपर लिखे १९ बोलोसे कोई भी बोल, साधु साध्वी सेवन करेगा, उसको गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त होगा,प्रायश्चित्त विधि देखो वीसवां उद्देशामे.
इति श्री निशिथसूत्र-आठवां उद्देशाका संक्षिप्त सार.
(6) श्री निशिथसूत्रका नौवां उद्देशा.
(१) 'जो कोइ साधु साध्वी ' राजपिंड (अशनादि आहार ) ग्रहन करे, ग्रहन करावे ग्रहन करते हुवेको अच्छा समने.
भावार्थ-सेनापति, प्रधान, पुरोहित, नगरशेठ और सार्थवाह-इस पांच अंग संयुक्तको राजा कहा जाता है.
(१) उन्होंके राज्याभिषेक समयका आहार लेनेसे शुभाशुभ होने में साधुवोंका निमित्त कारण रहता है.
(२) राजाका बलिष्ठ आहार विकारक होता है, और राजाका आहार बचे, उसमें पंडा लोगोंका विभाग होता है. वह आहार लेनेसे उन लोगोंको अंतरायका कारण होता है. एवं रानपिंड भोगवे. ३
(३), राजाके अन्तेउर (जनानागृह में प्रवेश करे, करावे, करतेको अच्छा समझे.