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(१६-१७ ) एवं दो सूत्र शय्यातर संबंधी रजोहरणका भी समझना. जैसा रजोहरणका च्यार सूत्र कहा है, इसी माफिक दांडो, लाठी, खापटी, वांसकी सूइका भी च्यार सूत्र समझना. एवं २१.
(२२),, सरचीना शय्या, संस्तारक, गृहस्थोंको वापिस सुप्रत कर दीया, फिर उसपर बैठे आसन लगावे. ३ अगर बै. ठना हो तो दुसरी दफे आज्ञा लेना चाहिये. नहीं तो चोरी लगती है.
(२३) एवं शय्यातर संबंधी. (२४),, सण, उन, कपासकी लंबी दोरी भठे करे. ३
(२५), सचित्त (जीव सहित ) काष्ठ, वांस, बेतादिका दांडा करे. ३
(२६) एवं धारण करे ( रखे ) ( २७ ) एवं उसे काममें लेवे.
भावार्थ-हरा झाडका जीव सहित दंडादि करने रखने और काममें लेनेकी मना है. इसे जीवविराधना होती है. इसी माफिक चित्रवाला दंडा करे, रखे, वापरे. २८-३०
इसी माफिक विचित्र अर्थात् रंग बेरंगा दंडा करे, रखे, बापरे. वह साधु प्रायश्चित्तका भागी होता है. ३१-३३ ।।
(३४), ग्राम नगर यावत् सन्निवेशकी नवीन स्थापना हुइ हो, वहांपर जाके साधु अशनादि च्यार आहार ग्रहन करे. ३
. भावार्थ--अगर कोइ संग्रामादिके कटकके लीये नवा ग्रामादिककी स्थापना करते समय अभिषेक भोजन बनाते है, वहां मुनि जानेसे शुभाशुभका ख्याल तथा लोगोंको शंका होती है