________________
१८६ चौद पूर्वधर महर्षियोंकी प्रतिज्ञा-अपेक्षा ( प्रतिमा ) दो प्रकारको कहते है. क्षुल्लकमोयक प्रतिमा, महामोयक प्रतिमा. जिसमें क्षुल्लकमोयक प्रतिमा धारण करनेवाले महर्षियोंको शरदकालमृगसर माससे आषाढ मास तक जो ग्राम, नगर यावत् सन्निवेशके बहार वन, वनखंड जिसमें भी विषम दुर्गम पर्वत, पहाड, गिरिकन्दरा, मेखला, गुफा आदि महान् भयंकर, जो कायर पुरुष देखे तो हृदय कम्पायमान हो जावे, ऐसी विषम भूमि काकी अन्दर भोजन करके जावे, तो छ उपवास (छे दिनतक)
और भोजन न कीया हो तो सात उपवाससे पूर्ण करे, और महामोयक प्रतिमा, जो भोजन करके जावे, तो सात दिन उपवास, भोजन न करे तो आठ दिन उपवास करे. विशेष इस प्रतिमाकी विधि गुरुगम्यतामें रही हुइ है. वह गीतार्थ महात्मा. वोसे निर्णय करे. क्यों कि-अहासुत्त, अहाकापं, अहामग्गं. सूत्रकारोंने भी इसी पाठपर आधार रखा है. अन्तमें फरमाया है कि-जैसी जिनाज्ञा है, वैसी पालन करनेसे आज्ञाका आराधक हो सकता है. स्यावाद रहस्य गुरुगमसे ही मिल सकता है.
(४३ ) दातकी संख्या करनेवाले मुनि पात्रधारी गृहस्थोंके यहां जाते है. एक ही दफे जितना आहार तथा पाणी पात्र में पड जाता है, उसको शास्त्रकारोंने एक दातीका मान बतलाया है. जैसे बहतसे जन एक स्थानमें भोजन करते है. वह स्वल्प स्वल्प आहार एकत्र कर, एक लाडु बनाके एक साथमें देवे. उसे भी एक ही दाती कही जाती है. (४४ ) इसी माफिक पाणीकी दाती भी समझना. (४५) मुनि मोक्षमार्गका साधन करनेके लीये अनेक प्रकारके अभिग्रह धारण करते है. यहां तीन प्रकारके अभिग्रह बतलाये है.