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(१०) शय्यातरके न्यातीले एक मकानकी अन्दर पाणी विगरे सामेल है. एक चूलेपर भिन्न भिन्न भाजनमें आहार तैयार कीया है. उस आहारसे मुनिको आहार देवे तो वह आहार मुनिको लेना नहीं कल्पै. कारण-पाणी दोनोंका सामेल है..
(११-१२ ) एवं दो सूत्र, घरके बहार चुलापर आहार तैयार करनेका यह च्यार सूत्र एक घरका कहा. इसी माफिक (१३-१४ १५-१६ ) च्यार सूत्र अलग अलग घर अर्थात् एक पोलमें अलग अलग घर है. परन्तु एक चूलापर एकही बरतनमें आहार बनावे पाणी विगेरे सब सामेल होनेसे वह आहार.साधु साध्वीयोंको लेना नहीं कल्पै.
(१७) शय्यातरकी दुकान किसीके सीर (हिस्सा-पांती) में है. वहांपर तेल आदि क्रय विक्रय होता हो. वेचनेवाला भागी. दार है. साधुवोको तैलका प्रयोजन होने पर उस दुकान ( जोकि शय्यातरके विभागमें है, तो भी ) से तैलादि लेना नहीं कल्पै. शय्यातर देता हो, तो भी लेना नहीं तल्पै सीरवाला दे तो भी लेना नहीं कल्पै.
(१९-२०) एवं शय्यातरकी गुलकी शाला ( दुकान.) (२१-२२) एवं क्रियाणाकी दुकानका दो सूत्र. (२३-२४) एवं कपडाकी दुकानका दो सूत्र. (२५-२६) एवं सूतकी दुकानका दो सूत्र. (२७-२८) एवं कपास ( रुइ ) की दुकान का दो सूत्र. (२९-३०) एवं पसारीकी दुकानका दो सूत्र. (३१-३२) एवं हलवाइकी दुकानका दो सूत्र. (३३-३४) एवं भोजनशालाका दो सूत्र. (३५-३६) एवं आम्रशालाका दो सूत्र.