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श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला-पुष्प नं. ६६
।। श्री रत्नप्रभसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥
अथ श्री शीघ्रबोध भाग २२ वां.
(श्रीनिशीथ सूत्र.) निशीथ-आचारांगादि आगमों में मुनियोंका आचार बतलाया है, उस आचारसे स्खलना पाते हुवे मुनियोंको नशियत देनेरुप यह निशिथसूत्र है. तथा मोक्षमार्गपर चलते हुवे मुनियोको प्रमादादि चौर उन्मार्गपर ले जाता हो, उस मुनियोंको हितशिक्षा दे सन्मार्गपर लानेरुप यह निशिथसूत्र है.
शास्त्रकारोंका निर्देश वस्तुतत्त्व बतलानेका है, और वस्तु. तत्वका स्वरुप सम्यक् प्रकारसे समझना उसीका नाम ही स. म्यग्ज्ञान है,
धर्मनीति के साथ लोकनीतिका घनिष्ठ संबंध है. जैसे लोकनीतिका नियम है कि-अमुक अकृत्य कार्य करनेवाला मनुष्य, अमुक दंडका भागी होता है. इससे यह नहीं समझा जाता है कि सब लोग ऐसे अकृत्य कार्य करते होंगे. इसी माफिक धर्मशास्त्रोंमें भी लिखा है कि-अमुक अकृत्य कार्य करनेवालेको अमुक प्रायश्चित्त दिया जाता है. इसीसे यह नहीं समझा जावे किसब धर्मज्ञ अमुक अकृत्य कार्य करनेवाले होंगे. हां, धर्मशास्त्र और नीतिका फरमान है कि अगर कोइभी अकृत्य कार्य करेगा,