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( ५३ ) एक मकानके लीये पाट पाटला लाया हो, फिर. किसी कारण से दुसरे मकानमें जाना हो, उस बखत विगर आज्ञा दुसरे मकानमें ले जावे. ३
( ५४ ),, जितने कालके लीये पाट पाटला तृण संस्तारक लाया हो, उसे कालमर्यादासे अधिक विना आज्ञा भोगवे. ३ (५५) पाट पाटला के मालिककी आज्ञा बिगर दुसरेको देवे. ३
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( ५६ ) पाट पाटला शय्या संस्तार विना दीये दुसरे ग्राम विहार करे. ३
(५७) जीवोत्पत्ति न होनेके कारण पाट पाटले पर कोई भी पदार्थ लगाया हो, उसे विगर उतारे धणीको पीछा देवे. ३ (५८) ,, जीव सहित पाट पाटला गृहस्थोंका वापिस देवे. ३ (५९), गृहस्थों का पाट पाटला आज्ञासे लाया, उसे कोइ चौर ले गया. उसकी गवेषणा नहीं करे. ३
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भावार्थ - बेदरकारी रखनेसे दुसरी दफे पाट पाटला मीलनेमें मुश्केली होगी ?
( ६० ) जो कोइ साधु साध्वी किंचित् मात्र भी उपधि न प्रतिलेखन करी रखे, रखावे, रखते हुवेको अच्छा समझे.
उपर लिखे ६० बोलों से कोइ भी बोल, साधु साध्वी सेवन करे, दुसरोंसे सेवन करावे, अन्य सेवन करते हुवेको अच्छा समझे, सहायता देवे. उस साधु साध्वीयोंको लघु मासिक प्रायचित्त होता है. प्रायश्चित्त विधि पुर्ववत्.
इति श्री निशिसूत्र के दूसरे उद्देशाका संक्षिप्त सार.